कहीं खुद की असफलताओं से ध्यान हटाने को अटेकिंग तो नही त्रिवेंद्र? 

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कहीं खुद की असफलताओं से ध्यान हटाने को अटेकिंग तो नही त्रिवेंद्र? 

आंदोलन के बाद बदले गए कई फैसले तो कुछ मे आज भी भाजपा असहज

देहरादून। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत समय समय पर अपनी ही सरकार को घेरने और असहज करने का कोई मौका नही चूक रहे है। सीएम पद से हटाये जाने के बाद कुछ समय वह दून मे बैठकर उन वजहों को तलाशते रहे, लेकिन हरिद्वार से लोक सभा मे पहुँचने के बाद उन्होंने एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश सरकार को बदनाम करने का टॉप गीयर दबा दिया है त्रिवेंद्र कई मर्तबा बीजेपी के नहीं कांग्रेस पार्टी की भूमिका नजर आते हैं । यहाँ तक की त्रिवेंद्र विपक्ष के साथ मिलकर सरकार और बीजेपी संगठन के ख़िलाफ़ षड्यंत्रों में शामिल रहे हैं । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बीजेपी के संगठन महामंत्री रहे संजय कुमार के ख़िलाफ़ हुए षड्यंत्र में भी त्रिवेंद्र रावत और उनके खासम ख़ास रहे तत्कालीन मेयर सुनील उनियाल गामा की प्रत्यक्ष भूमिका रही है । 

त्रिवेंद्र ने एक बार फिर राज्य मे अवैध खनन की बात उच्च सदन मे उठाकर कांग्रेस के सामने मुद्दा परोस दिया है। हालांकि विभागीय सचिव ने अवैध खनन से रिकार्ड राजस्व अर्जित करने और खनन माफियाओं से भी बड़ी वसूली का व्योरा मुहैया कराया है। सचिव वी के संत अवैध खनन को सिरे से नकार रहे हैं तो वहीं उनका कहना है कि खनन से पूर्व की अपेक्षा 4 पांच गुना राजस्व बढ़ा है। पहले खनन का एक बड़ा हिस्सा माफिया चोरी छिपे चट कर जाता था, लेकिन अब यह आसान नही। वहीं भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कांग्रेस के विरोध पर पलटवार करते हुए कहा कि माफिया की करतूत पर चोट पहुंची तो विरोध स्वाभाविक है। 

खनन के अलावा ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर त्रिवेंद्र कार्यकाल मे लिए फैसले वापस लिए गए और वह उन पर नाराजगी भी जता चुके है। देव स्थानम बोर्ड को लेकर आंदोलन चला तो उसी दौरान उनकी कुर्सी भी चली गयी। त्रिवेंद्र सहित तत्कालीन मंत्रियों को भी केदारनाथ जाना आसान नही रहा। सीएम बनते ही धामी ने देव स्थानम बोर्ड भंग कर दिया और व्यवस्था पटरी पर लौट गयी। हालांकि इस दौरान कई बदलाव अस्तित्व मे आये, लेकिन सहजता और तीर्थ धाम पुरोहितों को विश्वास मे लेकर कार्य किये गए।

त्रिवेंद्र रावत सरकार मे विस भर्तियों तथा सरकारी नौकरियों का गड़बड़झाला भी सामने आया था। नकल माफिया  हाकम सिंह पर शिकंजा कसा गया तो सवाल तैरा कि हाकम का हाकिम कौन? सोशल मीडिया पर उनकी हाकम के साथ तस्वीर भी वायरल हुई। और त्रिवेंद्र सरकार में हाकम रावत के ख़िलाफ़ हरिद्वार जिले में भर्ती घोटाले के मुकदमे दर्ज हुए लेकिन हाकम का नाम त्रिवेंद्र के दबाव में मुकदमे से नाम हटा दिए गए । बाद मे सीएम धामी ने भर्ती घोटालों की जांच करायी और कड़ा नकल कानून अस्तित्व मे आ गया। 

हाल ही मे अस्तित्व मे आये भू कानून और राज्य मे डेमोग्राफी चेंज को लेकर भाजपा सरंक्षण के तमाम दावे कर रही है, लेकिन राज्य मे जमीनों की अनलिमिटेड खरीद फरोख्त की छूट त्रिवेंद्र सरकार मे मिली और आज विपक्ष द्वारा पुराने भू कानून को खत्म करने और डेमोग्राफी चेंज के लिए भाजपा को निशाने पर लिया जाता है। धामी सरकार पूर्व मे हुई गलतियों को सुधारने मे जुटी तो है, लेकिन लगातार खुल रहे मोर्चों ने स्थिति असहज कर दी है।

 एक ओर विस मे हुए घटना के बाद सरकार डेमेज कंट्रोल मे जुटी तो प्रेम चंद अग्रवाल के बोल को कटघरे मे खड़ा करने और सार्वजनिक जीवन मे आचरण को लेकर उन्होंने जो नैतिकता की सीख दी वह भी आग मे घी जैसा साबित हुआ। विपक्ष ने भी उनकी लाइन मे सुर मिलाये।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि त्रिवेंद्र न धामी को पचा नहीं पा रहे हैं और न ही खुद को सीएम पद से हटाने की टीस। वह कई बार कह चुके है कि उनके लिए यह सवाल रहस्य बना है कि उन्हे क्यों हटाया गया। दूसरी ओर त्रिवेंद्र के विषैले बोल धामी सरकार को असहज तो कर ही रहे हैं और तकरार बढ़ती ही जा रही है।

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